जब नदी अपने घर लौट आई — धराली की त्रासदी से निकला एक पुराना सबक
रिपोर्ट: डाo परितोष उप्रेती
धराली — हर्षिल घाटी का वह छोटा-सा गाँव, जहाँ खीर गंगा की कल-कल धारा मानो लोरी-सी गुनगुनाती है।
यही गाँव मंगलवार की दोपहर पर एक आवाज़ ने तहलका मचा दिया, वह लोरी नहीं — मौत की गर्जना थी।
बादल फटा, सपने बहे
दोपहर अतिवृष्टि में बादल फटने के कारण त्वरित बाढ़ (Flash Flood) आने से भारी नुक़सान होने की खबर है।
आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक, मंगलवार को उत्तरकाशी ज़िले के धराली–हर्षिल क्षेत्र में लगातार तीन बादल फटने की घटनाएँ हुईं, जिसने पूरे इलाके को तबाही के अंधेरे में धकेल दिया।
पहली घटना — धराली (हर्षिल के पास)
समय: दोपहर 1:00 बजे
स्थान: 31°02’23″N, 78°46’54″E
असर: खीर गंगा में भारी पानी और मलबे का सैलाब उतर आया।
अनुमानित क्षति: लगभग 15 मकान और 6–7 दुकानें बह गईं या बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गईं।
दर्जनों लोग लापता बताए जा रहे हैं।
हादसे के समय एक स्थानीय मेला चल रहा था, जिससे भीड़ ज़्यादा थी और संभव है कि पीड़ितों की संख्या बढ़ी हो।
दूसरी घटना — हर्षिल और गंगनानी के बीच (सुक्की टॉप के पास)
समय: दोपहर 3:00 बजे
प्रभाव: क्षति का आकलन जारी है, लेकिन प्रारंभिक रिपोर्ट में तेज़ जलप्रवाह और ढांचागत नुकसान के संकेत हैं।
तीसरी घटना — आर्मी कैंप, हर्षिल के पास
समय: दोपहर 3:30 बजे
असर: अचानक आई बाढ़ ने हर्षिल हेलिपैड को डुबो दिया, जिससे हवाई राहत और निकासी कार्य पर असर पड़ा है।
स्थानीय प्रशासन, एसडीआरएफ और पुलिस मौके पर जुटे हैं, लेकिन लगातार बारिश और कठिन भूभाग राहत कार्य में बड़ी बाधा बन रहे हैं।
कुछ ही मिनटों में पहाड़ों से उमड़ा पानी खीर गंगा में मिला और उसका रंग बदल गया — दूधिया सफ़ेदी की जगह मटमैला भूरा, जिसमें चट्टानों, पेड़ों और मिट्टी का मलबा था। पानी की रफ़्तार इतनी थी कि सामने खड़े 5 होटल और 25 होमस्टे पलक झपकते ही बह गए।
आपदा का ये दिल दहलाने वाला वाइरल विडीओ आपने ज़रूर देखा होगा। आँखों-देखी बताने वालों के मुताबिक, पानी का शोर इतना तेज़ था कि चीखें डूब गईं।
कम से कम 12 लोग ज़िंदा मलबे में दब गए, 25 की मौत की पुष्टि हो चुकी है, और कई अब भी लापता हैं।

नदी की पुरानी स्मृति
धराली की यह त्रासदी हमें भू-आकृति विज्ञान के उस पुराने सबक की याद दिलाती है: “नदी अपनी राह कभी नहीं भूलती — चाहे दस साल लगें, पचास लगें या पाँच सौ, वह लौटकर आएगी ही। बाढ़ का मैदान उसका आँगन है, और वहाँ घर बनाना, पानी की स्मृति में घर बनाने जैसा है — एक दिन वह स्मृति लौटकर ज़रूर आएगी।” प्रकृति के लिए एक बहुत ही सामान्य सी घटना है, जो की नदी के लाखों-करोड़ों वर्ष के जीवन काल में अक्सर होती रहती है।
बस इस बार अंतर ये है कि खीर गंगा की धार सदियों पहले जहाँ बहती थी, वही इलाका अब लोगों के घरों और होटलों से भर गया था।
वर्षों से वह धारा शांत थी, पर मंगलवार को उसने अपनी पुरानी राह पहचान ली — और लौट आई।
पहाड़ का सबक
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले बुज़ुर्ग अक्सर कहते हैं, “पहाड़ और पानी को कभी हल्के में मत लेना।”
लेकिन पहाड़ों की खूबसूरती और पर्यटन की दौड़ में, हमने यह सबक कहीं पीछे छोड़ दिया।
धराली की घटना यह याद दिलाती है कि हम प्रकृति के मालिक नहीं — केवल उसके मेहमान हैं और मेहमान कभी भी मालिक के आँगन में अपनी मनमर्ज़ी से नहीं रह सकते।
अब आगे क्या?
सरकारी टीमें राहत और बचाव में जुटी हैं। मौसम विभाग ने आने वाले दिनों में और बारिश की चेतावनी दी है।
लेकिन राहत सामग्री से ज़्यादा ज़रूरत है उस सोच को बदलने की — जिसमें हम नदियों के किनारे और बाढ़ के मैदानों को स्थायी ठिकाना समझ बैठते हैं। पर अफ़सोस ये सबक़ हम लेना नहीं चाह रहे, केदारनाथ त्रासदी में नदी ने जहां क़हर मचाया था, आज आप उस जगह जाएँ तो उस से भी दुगने मकान और होटल वहाँ पाएँगे।
आलम ये है कि उत्तराखंड सरकार ने केदारनाथ जैसी आपदा होने के बावजूद भी, नदी के समीप 200 मीटर दोनो ओर के आसपास किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य करने का जो सरकारी शासनादेश था उसको विकास के नाम पर बदलकर 50 मीटर कर दिया गया।
धराली की कहानी सिर्फ़ एक गाँव की नहीं — यह हिमालय के हर उस बस्ती की चेतावनी है जो नदी के आँगन में घर बनाए बैठी है, यह सोचकर कि पानी कभी वापस नहीं आएगा।
परितोष उप्रेती, राजकीय महाविद्यालय भिकियासैंण, अल्मोड़ा में वर्तमान में भूगोल के प्राध्यापक है । वे आपदा प्रबंधन से ‘यूनिवर्सिटी ओफ़ जेनीवा, स्वीटज़रलैंड’ से डिप्लोमा एवं अपना शोध कार्य भी आपदा प्रबंधन पर कर चुके हैं।