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“ क्या आप सच में ठीक हैं?” मानसिक स्वास्थ्य पर एक जरूरी चर्चा: डॉ. नेहा

हमारे समाज में हम हर छोटी-बड़ी शारीरिक बीमारी पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं—बुखार हो, चोट लगे या थकावट हो, हम डॉक्टर के पास जाते हैं। पर जब बात मन की होती है—थकान, घबराहट, अकेलापन, निराशा—तो या तो हम उसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं, या यह मान लेते हैं कि “सब ठीक है, वक्त के साथ गुजर जाएगा।”
यहीं हम गलती कर बैठते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य क्या है?

मानसिक स्वास्थ्य केवल ‘पागलपन’ से जुड़ा विषय नहीं है, जैसा आम धारणा है। यह हमारे सोचने, महसूस करने, संबंध निभाने और जीवन में संतुलन बनाए रखने की क्षमता का आधार है।
यह हमें कठिन हालात में टिके रहने, फैसले लेने, और आत्मविश्वास से जीवन जीने की शक्ति देता है।

किन कारणों से बिगड़ता है मानसिक स्वास्थ्य?


• लगातार तनाव – नौकरी, शिक्षा, रिश्ते या आर्थिक दबाव
• अतीत का आघात – बचपन की घटनाएं, हिंसा या उपेक्षा
• सोशल मीडिया का प्रभाव – दूसरों से तुलना और अवास्तविक उम्मीदें
• समर्थन की कमी – बात करने या समझने वाला कोई नहीं
• शारीरिक असंतुलन – नींद, भोजन और व्यायाम की अनदेखी

आम लक्षण क्या हैं?


• हर समय थकान या निराशा महसूस होना
• नींद में बदलाव (बहुत ज़्यादा या बहुत कम)
• दोस्तों, परिवार से दूरी बनाना
• काम या पढ़ाई में रुचि कम होना
• बार-बार बेचैनी या घबराहट
• खुद को कमतर समझना
• जीवन के प्रति रुचि या उद्देश्य का अभाव

कब मदद लेनी चाहिए?

अगर ये लक्षण लगातार दो सप्ताह से ज़्यादा समय तक बने रहें, तो मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श लेना बेहद आवश्यक है।
जैसे हम मधुमेह या उच्च रक्तचाप को नजरअंदाज नहीं करते, वैसे ही मन की बीमारी को भी अनदेखा नहीं करना चाहिए।

इलाज संभव है—और प्रभावी भी


• मनोचिकित्सक या काउंसलर से परामर्श लें
• जरूरत हो तो दवाएं लें, जैसे अन्य बीमारियों में ली जाती हैं
• मेडिटेशन, योग और रूटीन बनाएं
• भरोसेमंद लोगों से बात करें, खुद को अकेला न समझें
• ऑनलाइन हेल्पलाइन और टेलीथेरेपी का विकल्प भी आज मौजूद है

एक डॉक्टर के रूप में मेरा संदेश

मैंने देखा है—बिलकुल सामान्य दिखने वाले चेहरे, जो हर दिन मुस्कराते हैं, भीतर से टूट रहे होते हैं।
एक छात्रा, जो क्लास में अव्वल है, पर हर रात रोते हुए सोती है।
एक पिता, जो पूरे परिवार को चलाता है, पर खुद को व्यर्थ महसूस करता है।
एक मां, जो सबका ख्याल रखती है, पर अपने लिए वक्त नहीं निकाल पाती।

इनमें से कोई भी कमजोर नहीं है। इन्हें चाहिए—समझ, सहानुभूति और उपचार।

आख़िर में एक ज़रूरी बात
हमारा समाज अब बदल रहा है, लेकिन अभी भी हमें मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है।
“मैं ठीक नहीं हूँ” कहने में कोई शर्म नहीं होनी चाहिए।
यह स्वीकार करना पहला और सबसे बहादुर कदम होता है।
मानसिक स्वास्थ्य भी स्वास्थ्य है। इसे उतनी ही प्राथमिकता दें जितनी शरीर को देते हैं। क्योंकि एक स्थिर मन ही स्वस्थ जीवन की असली कुंजी है।