Shakti Samachar Online

लोकतंत्र की असली नब्ज: पंचायत चुनाव

उत्तराखंड जैसे पहाड़ी और ग्रामीण राज्य में पंचायत चुनाव का महत्व शहरी निकायों से कहीं अधिक होता है। यहां हर गाँव की अपनी समस्याएं हैं — कहीं पानी नहीं, कहीं सड़क नहीं, कहीं स्कूल तो है लेकिन शिक्षक नहीं। इन समस्याओं का हल दिल्ली या देहरादून से नहीं होगा। ग्राम पंचायत ही पहला और सबसे जरूरी प्लेटफॉर्म है, जहां समाधान की शुरुआत होती है।

विकास का स्थानीय मॉडल

पंचायतें सिर्फ सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन करने का मंच नहीं हैं। वे विकास का स्थानीय मॉडल तय करती हैं। किस गांव में सड़क पहले बनेगी? किस खेत तक पानी पहुंचेगा? स्कूल का विस्तार होगा या आंगनवाड़ी की मरम्मत? ये सब निर्णय पंचायतों द्वारा होते हैं। और यही कारण है कि पंचायत चुनाव में जनता को पार्टी नहीं, व्यक्ति की नीयत, योग्यता और समझ देखनी चाहिए।

महिलाओं की भूमिका: आरक्षण से वास्तविक सशक्तिकरण तक

उत्तराखंड में बड़ी संख्या में महिलाएं सरपंच, ग्राम प्रधान और बीडीसी के पदों पर चुनी जा रही हैं। यह केवल आरक्षण की देन नहीं है — यह सामाजिक चेतना का संकेत है। महिला नेतृत्व से गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसे मुद्दों पर प्राथमिकता बढ़ी है। लेकिन चुनौती यह है कि कई बार चुनी गई महिला नेताओं की जगह उनके पति या परिवार के सदस्य ‘प्रॉक्सी’ बनकर काम करते हैं। इस प्रथा को तोड़ने की जिम्मेदारी पूरे समाज की है।

राजनीति से ऊपर ग्रामहित

राजनीतिक दल पंचायत चुनावों में सक्रिय रहते हैं, लेकिन जागरूक मतदाता को यह समझना होगा कि पंचायती राज में पार्टी नहीं, प्रशासनिक समझ और सामाजिक संवेदना रखने वाला व्यक्ति ज्यादा जरूरी है। कई बार राजनीतिक दल के ज़ोर पर अयोग्य व्यक्ति चुन लिया जाता है, और फिर गांव अगले 5 साल तक पछताता है।

चुनाव के बाद की भागीदारी: नागरिक भी जिम्मेदार

चुनाव सिर्फ मतदान तक सीमित नहीं। नागरिकों को पंचायत बैठकों में शामिल होना चाहिए, फंड के उपयोग की जानकारी लेनी चाहिए, और सवाल पूछने चाहिए। लोकतंत्र सिर्फ चुनने का अधिकार नहीं, जवाबदेही सुनिश्चित करने का अधिकार भी है।

भविष्य की दिशा: डिजिटल पंचायतें और युवा भागीदारी

आने वाले समय में पंचायतों को डिजिटल बनाना जरूरी होगा। फंड की ट्रैकिंग, शिकायत निवारण, दस्तावेज़ प्रबंधन — सब कुछ ऑनलाइन हो सकता है, और होना भी चाहिए। इसके लिए युवाओं की भागीदारी अनिवार्य है। युवा पढ़े-लिखे हैं, टेक्नोलॉजी में माहिर हैं और बदलाव लाने की ताकत रखते हैं। उन्हें पंचायत राजनीति से नहीं, सेवा से जोड़ने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष: पंचायत चुनाव जनजागरण का महोत्सव बनें

उत्तराखंड के पंचायत चुनाव केवल जनप्रतिनिधि चुनने का काम नहीं करते। ये हमें याद दिलाते हैं कि विकास का असली केंद्र गांव है, और गांव की सरकार वही है जिसे आप चुनते हैं।

इसलिए इस बार पंचायत चुनाव को एक सामाजिक पर्व की तरह लें — सोच-समझकर वोट करें, जाति-धर्म से ऊपर उठें, और ऐसा नेतृत्व चुनें जो आपके बच्चों का भविष्य बेहतर बना सके।