संपादकीय: उत्तराखंड की आपदाएँ — मालपा से धाराली तक, क्या हम कुछ सीख पाए हैं?
उत्तराखंड की मालपा और धाराली आपदाएँ: क्या हम प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर पाए हैं?
उत्तराखंड, जिसे अपनी प्राकृतिक सुंदरता और तीर्थ स्थलों के लिए जाना जाता है, वही राज्य लगातार प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है। इन घटनाओं ने न केवल जनहानि का कारण बनाई है, बल्कि प्रदेश की विकास योजनाओं, पर्यावरणीय असंतुलन और आपदा प्रबंधन पर गंभीर सवाल भी खड़े किए हैं। 1998 में मालपा की त्रासदी से लेकर 2025 में धाराली की आपदा तक, इन दोनों घटनाओं ने हमें यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या हम इन आपदाओं से निपटने के लिए तैयार हैं?
मालपा आपदा (1998)
1998 में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के मालपा गांव में हुई एक भीषण भूस्खलन ने 221 लोगों की जान ले ली थी। इस आपदा में 60 तीर्थयात्री भी मारे गए थे। मालपा में यह हादसा भारी बारिश, भूस्खलन, और असंतुलित निर्माण कार्यों का परिणाम था। यह आपदा उत्तराखंड के लिए एक चेतावनी बन गई थी, जो राज्य सरकार और प्रशासन के लिए एक अहम सीख रही।

शक्ति समाचार की 1998 के अंक में प्रकाशित रिपोर्टों और आर्काइव से ली गई तस्वीरों में इस भूस्खलन की भयावहता को दिखाया गया था। इन रिपोर्टों में यह भी उल्लेख किया गया था कि मालपा में स्थित तीर्थयात्रियों और गांववासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता थी। रिपोर्टों में यह भी कहा गया था कि मालपा जैसे आपदाग्रस्त क्षेत्रों में असंतुलित निर्माण कार्यों और जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने स्थिति को और गंभीर बना दिया था।

शक्ति समाचार के 1998 संस्करण में प्रकाशित तस्वीरें मालपा आपदा के दृश्य को दर्शाती हैं, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे भूस्खलन के कारण पूरा गांव तबाह हो गया और आसपास के क्षेत्र में तबाही मची। इन तस्वीरों ने इस त्रासदी की भयंकरता को सामने लाया और इसने हमारे विकास और निर्माण कार्यों के तरीके को लेकर गंभीर सवाल खड़ा किया।

धाराली आपदा (2025)
हाल ही में 5 अगस्त 2025 को उत्तरकाशी जिले के धाराली क्षेत्र में हुई बाढ़ और भूस्खलन ने उत्तराखंड को फिर से एक नई चुनौती दी। धाराली में बादल फटने और ग्लेशियर झील के फटने के कारण भारी बाढ़ आई, जिसने कई घरों को बहा दिया, सड़कें और पुलों को क्षतिग्रस्त कर दिया और कई लोग लापता हो गए। इस आपदा ने यह सवाल खड़ा किया कि क्या हम प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार हैं?

धाराली की आपदा ने मालपा से एक महत्वपूर्ण अंतर दिखाया, जहां मालपा में मुख्य रूप से भूस्खलन ने तबाही मचाई, वहीं धाराली में ग्लेशियर झील के फटने के कारण आई बाढ़ ने प्रभावित क्षेत्र को और भी गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाया। इस घटना ने यह साबित कर दिया कि उत्तराखंड में पर्यावरणीय असंतुलन और जलवायु परिवर्तन का असर अब और भी गंभीर हो रहा है, और अगर इसे जल्द नहीं संभाला गया, तो भविष्य में इन आपदाओं के और बढ़ने की संभावना है।
मालपा और धाराली आपदाओं की समानताएँ और अंतर
समानताएँ:
• प्राकृतिक कारण: मालपा और धाराली दोनों घटनाएँ प्राकृतिक कारणों से हुईं, हालांकि मालपा में भूस्खलन और धाराली में ग्लेशियर झील के फटने के कारण बाढ़ आई।
• मानव हस्तक्षेप: दोनों आपदाओं में असंतुलित विकास, अव्यवस्थित निर्माण और पर्यावरणीय असंतुलन ने आपदा की तीव्रता को बढ़ाया।
• जनहानि: दोनों घटनाओं में बड़ी जनहानि हुई और कई लोग प्रभावित हुए। मालपा में 221 लोग मारे गए थे, वहीं धाराली में भी कई लोग लापता हो गए।
अंतर:
• प्राकृतिक उत्पत्ति: मालपा में भूस्खलन और धाराली में ग्लेशियर झील के फटने के कारण बाढ़ आई। धाराली की आपदा में पानी के अत्यधिक दबाव ने गांवों को पूरी तरह से तबाह कर दिया, जबकि मालपा में मुख्य रूप से मिट्टी और चट्टानों का खिसकना था।
• आपदा प्रबंधन: मालपा के बाद राज्य ने भूस्खलन और पर्यावरणीय असंतुलन के खतरे को समझते हुए कुछ कदम उठाए थे, जबकि धाराली जैसी आपदा से निपटने के लिए अभी तक कोई ठोस योजना नहीं बनी है।
क्या हम कुछ सीख पाए हैं?
इन आपदाओं से यह सीख मिलती है कि हमें हमारे विकास कार्यों और निर्माण मानकों को और अधिक पर्यावरणीय रूप से स्थिर बनाना होगा। शक्ति समाचार के 1998 के अंक में यह स्पष्ट किया गया था कि मालपा जैसी आपदाओं से बचने के लिए हमें न केवल भवन निर्माण के मानकों में सुधार करना होगा, बल्कि हमें पर्यावरणीय संरक्षण और आपदा प्रबंधन पर भी गंभीर ध्यान देना होगा।
यदि हम प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए ठोस कदम उठाना चाहते हैं, तो हमें पहले से इन आपदाओं के प्रभाव का आकलन करना होगा और फिर एक प्रभावी योजना के तहत कार्य करना होगा।
भविष्य की तैयारी:
हम सभी को यह समझना होगा कि उत्तराखंड की भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाएँ एक लंबे समय तक हमारे लिए चुनौती बनी रहेंगी। हमें पहाड़ी क्षेत्रों में स्थायी निर्माण कार्यों, जल निकासी प्रणालियों और पर्यावरणीय संतुलन के उपायों को लागू करने की आवश्यकता है। साथ ही, इन आपदाओं से निपटने के लिए स्थानीय समुदायों को भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वे आपदा के समय त्वरित और प्रभावी सहायता प्रदान कर सकें।
निष्कर्ष:
मालपा और धाराली की आपदाएँ हमें यह सिखाती हैं कि हमें विकास कार्यों और पर्यावरणीय प्रभावों के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए। यदि हम इसी दिशा में कदम उठाते हैं, तो आने वाले समय में ऐसी घटनाएँ कम हो सकती हैं। हम सभी का यह कर्तव्य है कि हम उत्तराखंड को सुरक्षित और समृद्ध बनाने की दिशा में अपने प्रयासों को और भी सशक्त बनाएं।