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धाराली जैसी आपदाएँ अप्रत्याशित नहीं हैं, इनकी पूर्व पहचान एवं तैयारी संभव है।

Dehradun-दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर (DLRC) एवं SPECS के संयुक्त तत्वावधान में आज दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर के सभागार में प्रातः 11 बजे से “धाराली फ्लैश फ्लड – टाइमलाइन में एक और आपदा” विषय पर एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। यह व्याख्यान “दि देहरादून डायलॉग (TDD) सीरीज़” के अंतर्गत आयोजित किया गया, जो कि विज्ञान, समाज, नीतियों एवं विकास से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर संवाद स्थापित करने का एक नया प्रयास है। इन संवादों के निष्कर्ष राज्य की विकास योजना बनाने वाले विभागों एवं नीति-निर्माताओं तक पहुँचाए जाएंगे, ताकि योजनाओं को अधिक प्रभावी बनाया जा सके।

कार्यक्रम का शुभारंभ दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर (DLRC) के श्री चन्द्रशेखर तिवारी के स्वागत भाषण से हुआ। उन्होंने डॉ. दिनेश सती को इस महत्त्वपूर्ण और सामयिक विषय पर तकनीकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद दिया।

इसके पश्चात् दि देहरादून डायलॉग (TDD) की ओर से श्री हरि राज सिंह ने डॉ. सती का परिचय दिया। डॉ. सती को फील्ड जियोलॉजी (क्षेत्रीय भूविज्ञान) में 43 वर्षों का अनुभव है। वे Wadia Institute of Himalayan Geology (WIHG), सागर विश्वविद्यालय, KDMIPE-ONGC तथा CRRI-नई दिल्ली जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से जुड़े रहे हैं। संरचना एवं टेक्टोनिक्स, भू-स्खलन, हाइड्रोजियोलॉजी तथा इंजीनियरिंग जियोलॉजी में उनका गहन अनुभव है। उन्होंने नेपाल और भूटान सहित पूरे हिमालय में विस्तृत फील्ड अध्ययन किया है। उनकी प्रतिबद्धता को उनकी यह पंक्ति भली-भाँति व्यक्त करती है—
“ए फील्ड जियोलॉजिस्ट टुडे इज़ ए फील्ड जियोलॉजिस्ट फॉरएवर।”

डॉ. सती ने अपने व्याख्यान में कहा कि धाराली फ्लैश फ्लड में निर्दोष जीवन की क्षति और भारी संपत्ति के नुकसान पर हम सभी शोक व्यक्त करते हैं, परंतु यह आपदा अप्रत्याशित नहीं थी। लगभग हर वर्ष मानसून के समय हिमालयी क्षेत्रों में इस प्रकार की आपदाएँ होती हैं।

उन्होंने उपग्रह आंकड़ों के माध्यम से भूमि-आकृतियों की अस्थिरता को मापने और विभिन्न वर्षा-आधारित आँकड़ों से हैज़र्ड मॉडलिंग करने की प्रक्रिया पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने धाराली क्षेत्र की पिछली आपदाओं का टाइमलाइन प्रस्तुत किया जिसमें 1835, 1978, 2010, 2012, 2013, 2015 तथा 2018 की बाढ़/क्लाउडबर्स्ट की घटनाओं का विवरण दिया।

डॉ. सती ने स्पष्ट किया कि खीर गंगा बेसिन की भौगोलिक व भौतिक संरचना इस प्रकार की घटनाओं को जन्म देती है। प्राथमिक स्तर पर उपग्रह डेटा से ही अस्थिर सामग्रियों (morains, colluvium आदि) की पहचान की जा सकती है।

उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि असुरक्षित क्षेत्रों में भवन निर्माण व होटल व्यवसाय बिना किसी रोक-टोक के चलते रहे। आपदा प्रबंधन के लिए बनाई गई संस्थाएँ जैसे USDMA एवं USAC को अग्रिम चेतावनी देने की दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए थी, किंतु प्रायः वे केवल आपदा घटित होने के बाद ही दिखाई देती हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि राहत एवं पुनर्वास के साथ-साथ अब रोकथाम एवं पूर्व-योजना पर भी कार्य करने की आवश्यकता है।

आगे का मार्ग (Way Forward):

धाराली जैसी आपदाएँ अप्रत्याशित नहीं हैं, इनकी पूर्व पहचान एवं तैयारी संभव है।

सीमित संसाधनों के कारण जनसंख्या दबाव से लोग संवेदनशील क्षेत्रों में बस रहे हैं।

ग्लोबल क्लाइमेट चेंज के कारण जोखिम और बढ़ गए हैं।

हिमालयी बेसिन की अस्थिर भूमि-आकृतियों को उपग्रह आंकड़ों से पहचाना जा सकता है।

वर्षा आँकड़ों के आधार पर मॉडलिंग कर, विकास कार्यों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।

कार्यक्रम में डॉ. वाई. पी. सिंह एवं डॉ. बृज मोहन शर्मा ने डॉ. सती का सम्मान किया और उनके वैज्ञानिक विश्लेषण की सराहना की।

व्याख्यान में सनराइज अकादमी, उत्तरांचल विश्वविद्यालय, डीबीएस कॉलेज के विद्यार्थियों सहित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, संयुक्त नागरिक संगठन, सिविल डिफेंस आदि संस्थानों के शोधार्थियों ने भाग लिया। कुल 123 प्रतिभागियों ने इस संवादात्मक सत्र में सहभागिता की।

इस अवसर पर नागरिक समाज के कई सदस्य उपस्थित रहे जिनमें प्रमुख रूप से— बलेंदु जोशी, विभा पुरी दास, आर. के. मुखर्जी, जयराज, सुशील त्यागी, रानू बिष्ट, राजीव ओबेरॉय, डॉ. डी. पी. डोभाल, डॉ. दीपक भट्ट, कुसुम रावत, अतुल शर्मा, देवेंद्र बुडाकोटी, कर्नल अमित अग्रवाल, डॉ. अनिल जागी, भूमेंश भारती, नीरज उनियाल, चन्द्र स्वामी आदि सम्मिलित रहे।

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