31वें पं. गोविन्द बल्लभ पंत स्मारक व्याख्यान-हिमालयी क्षेत्रों में चरागाही क्षेत्रों और मानव जीव संघर्ष कि बारीकियों से अवगत कराया।
Almora-भारत रत्न पं. गोविन्द बल्लभ पंत जी के 138वें जन्मदिवस एवं गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी- कटारमल, अल्मोड़ा के स्थापना दिवस समारोह का शुभारम्भ सांसद अजय टम्टा एवं कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथियों द्वारा पं. गोविन्द बल्लभ पंत जी की मूर्ति पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन द्वारा किया गया।
कार्यक्रम के आरम्भ में संस्थान के निदेशक डा० आई०डी० भट्ट ने सभी अतिथियों को संस्थान तथा इसकी क्षेत्रीय इकाइयों द्वारा हिमालयी क्षेत्रों में किये जा रहे विभिन्न शोध और विकासात्मक कार्यों से अवगत कराया। उन्होंने संस्थान के पूर्व निदेशकों को स्मरण करते हुए संस्थान की उपलब्धियों तथा कार्यक्षेत्रों जैसे जल, आजीविका, जलवायु एवं जैव विविधता आदि का संक्षिप्त विवरण दिया। उन्होनें कहा कि विगत वर्षों में संस्थान नें जैव विविधता संरक्षण, सामाजिक एवं आर्थिक विकास, जलवायु परिवर्तन तथा जल जमीन संसाधनों के प्रबंधन के क्षेत्र में समन्वित प्रयास किये है। संस्थान विभिन्न विकासात्मक परियोजनाओं जैसे हिमालयी क्षेत्र के लोगों की आजीविका वर्धन, जैव विविधता संरक्षण, औषधीय पादपों के उत्पादन के तरीकों को जनमानस तक पहुंचाना तथा पानी के स्रोतों के संरक्षण इत्यादि को धरातल पर उतारने हेतु प्रयासरत है। इस अवसर पर उन्होंने पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त जी के हिमालय क्षेत्र में उनके योगदान के बारे में बताया। इसके पश्चात संस्थान की उपलब्धियों पर आधारित प्रगति रिपोर्ट एवं वीडियो फ़िल्म प्रस्तुत की गई।
संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा० अशोक कुमार साहनी ने 31वें पं. गोविन्द बल्लभ पंत स्मारक व्याख्यान के वक्ता डा० जी०एस० रावत, पूर्व निदेशक वाडिया भूविज्ञान संस्थान देहरादून का परिचय देते हुए उनके शोध कार्यों का जीवनवृत्त दिया।
इसके उपरान्त डा० जी०एस० रावत ने “भारतीय परा हिमालय के चारागाही क्षेत्र: परितंत्रीय सेवाओं और पशुचारण आधारित आजीविकाओं की निरन्तरता” विषय पर संस्थान का 31वां पं. गोविन्द बल्लभ पंत स्मारक व्याख्यान प्रस्तुत किया। अपने व्याख्यान में उन्होंने हिमालयी क्षेत्रों में चरागाही क्षेत्रों और मानव जीव संघर्ष कि बारीकियों से अवगत कराया। उन्होंने परा हिमालय के चारागाही क्षेत्रों की प्रमुख विशेषताओ से अवगत कराया. उन्होंने भारतीय हिमालयी क्षेत्र के लद्दाख, चांगथांग, लाहौल–स्पीति, किन्नौर तथा उत्तरी सिक्किम के रेंजेलैण्ड की स्थिति पर चर्चा की। अपने व्याख्यान के माध्यम से उन्होंने परा हिमालयी क्षेत्र के चरागाहों का क्षरण, शीतकालीन चारे की कमी, सैज मेडोज़/पीटलैण्ड का रूपांतरण, ऑफ-रोड ड्राइविंग से वन्यजीव विखंडन, स्थानीय विलुप्ति का खतरा, पर्यटन आधारित कचरा, मानव–वन्यजीव संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, चरम मौसमी घटनाएँ, नीतिगत अभाव, संस्थागत समन्वय की कमी जैसे ज्वलंत मुद्दों को उजागर किया. उन्होंने सामुदायिक संरक्षण आरक्षित क्षेत्रों, पर्यावरण–अनुकूल पर्यटन हेतु SOPs, तथा सामुदायिक संस्थाओं को सशक्त करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि विदेशी आक्रामक प्रजातियों ने हिमालयी क्षेत्रों में पायी जाने वाली महत्वपूर्ण और दुर्लभ प्रजातियों को समाप्त या समाप्ति की कगार पर कर दिया है। जिनके समाधान के लिए हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले सभी को एकजुट होकर आगे आने की जरूरत है। उन्होंने अवगत कराया कि हिमालय के बिना हमारा अस्तित्व नहीं है अतः हिमालय से जुड़े सभी हितधारकों को नीतिगत समाधान कर इन प्रजातियों के प्रबंधन की दिशा में अपना ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में माननीय सांसद एवं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री अजय टम्टा जी ने संस्थान द्वारा चलाये जा रहे आजीविका वर्धन में सहायक तथा शोध कार्यों की प्रशंसा की तथा कहा कि पं. गोविन्द बल्लभ पन्त द्वारा देश, समाज व मानव कल्याण के लिए किये गये कार्यों को हमें आत्मसात करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पं. गोविन्द बल्लभ पंत जैसे प्रखर और संघर्षशील नेता की जन्मस्थली में स्थित संस्थान आज अपने शोध और विकास कार्यो को वैश्विक स्तर पर फैला रहा है जो हम सबके लिए गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि वनाग्नि से प्रतिवर्ष सैकड़ो जीव जंतुओं और वनस्पतियों को नुकसान पहुँचता है और उनके जीवन को प्रभवित करता है। उन्होंने संस्थान से वनाग्नि की रोकथाम हेतु उचित दिशानिर्देश और कार्ययोजना बनाने की भी अपील की। उन्होंने सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रो के विकास हेतु वाइव्रेंट विलेज इत्यादि योजनाओं इत्यादि से भी सबको अवगत कराया।
कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि अतिथि वक्तव्य में डा. राजेन्द्र डोभाल, कुलपति, स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय, देहरादून ने हिमालय में दीर्घकालिक जलवायु मॉडलिंग और खगोल-भौतिकीय अध्ययनों के समन्वय की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आपदा जो आज चिंता का विषय बनी हुई है पर हमें काफी शोध कार्य करने की आवश्यकता है.
कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि पद्मश्री डा. अनूप साह, प्रख्यात प्रकृति छायाकार ने दुर्लभ एवं स्थानिक प्रजातियों की गैलरी निर्माण, स्थानीय ज्ञान के संरक्षण तथा बाल–युवाओं में प्रकृति चेतना के कार्यक्रमों पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले महत्वपूर्ण पेड़ पौधों और उनके डेटाबेस को संकलित कर उन्हें धरोहर के रूप में संजोने की आवश्यकता की बात की. उन्होंने युवाओं को प्रकृति के बीच जाकर प्रकृति से सीखने की आवश्यकता की बात कही.
कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि प्रो. एस.पी. सिंह, पूर्व कुलपति, एच.एन.बी. गढ़वाल विश्वविद्यालय ने हिमालयी अनुसंधान को वैश्विक नेटवर्क से जोड़ने, सहयोगात्मक शोध तथा स्थानीय समुदायोन्मुख अनुसंधान की आवश्यकता पर बल दिया।
कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि आलोक पाण्डे, जिलाधिकारी, अल्मोड़ा ने संस्थान एवं इसके द्वारा विकसित सूर्यकुंज मॉडल की भूरि-भूरि प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि संस्थान द्वारा विकसित यह मॉडल अल्मोड़ा एवं सम्पूर्ण उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ावा देने में मील का पत्थर साबित होगा जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी प्रदान होंगे. उन्होंने उत्तराखंड के स्थानीय जंगली फलों यथा हिशालू, काफल के उत्पादन को बढ़ाने और इसे बाज़ार परक बनाने की आवश्यकता पर बल दिया.
कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि अल्मोड़ा के पूर्व विधायक एवं भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष कैलाश शर्मा ने संस्थान के विकास कार्यों की सराहना की और कहा कि हिमालय पर कार्य करने में संस्थान ने अपनी स्थापना से लेकर आज तक काफी उत्कर्ष कार्य किये। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिको द्वारा बनायीं गयी नीतियों को समाज में आत्मसात करने की अति आवशकता है जिस हेतु पर्यावरण संस्थान उल्लेखनीय कार्य कर रहा है।
इसके उपरान्त संस्थान के निदेशक द्वारा शुरू की गयी नयी पहल के माध्यम से विगत वर्ष में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने वाले शोधार्थियों और कर्मचारियों को पुरुस्कृत किया गया. तदोपरान्त विशिष्ट अतिथियों के माध्यम से संस्थान के नए प्रकाशनों का भी विमोचन किया गया.
इस कार्यक्रम में पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार की संयुक्त सचिव सुश्री नमिता प्रसाद, वैज्ञानिक डा. सुसेन जॉर्ज, डा. एस.के. नन्दी, प्रो. जे.सी. कुनियाल ऑनलाइन माध्यम से तथा अल्मोड़ा के मेयर श्री अजय वर्मा, डी.एफ.ओ. अल्मोड़ा, पद्मश्री डा. ललित पाण्डे, प्रो. आर.के. मैखुरी, प्रो. जे.एस. रावत, प्रो. एल.एम तिवारी, प्रो. पी.के. सामल, प्रो. सी.एम. शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार पी.सी. तिवारी, डा. जी.सी.एस. नेगी, डा. एस.एस. सामन्त, डा. नवीन जोशी सहित संस्थान के समस्त वैज्ञानिकों, शोधार्थियों एवं कर्मचारियों समेत लगभग 250 प्रतिभागियों और गणमान्य व्यक्तियों नें प्रतिभाग किया। कार्यक्रम का संचालन डा. प्रतीक्षा जोशी एवं पर्णिका गुप्ता तथा समापन संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक ई. एम.एस. लोधी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।