Shakti Samachar Online

जब जीवन धूल झाड़ता हैः डा भाग्यश्री जोशी


विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस 10 सितंबर पर विशेष

हल्द्वानी। हम अक्सर अपने घरों की सफाई करते हैं धूल हटाते हैं, मकड़ी के जाले उतारते हैं, टूटी चीजों को जोड़ते हैं। पर क्या कभी हमने यह सोचा है कि मन भी कभी-कभी सफाई मांगता है ? हमारे भीतर जमा अकेलापन, असफलता का बोझ, अधूरेपन का डर ये सब उसी धूल की तरह हैं। धीरे-धीरे यह परत इतनी मोटी हो जाती है कि खिड़की से आती रोशनी भी धुंधली पड़ जाती है। 10 सितंबर विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस है। लेकिन शायद हमें आज किसी को “सुसाइड मत करो” कहने की जगह यह पूछना चाहिए” तुम्हारे कमरे की खिड़की खुली है या नहीं? “क्योंकि समस्या यह नहीं कि लोग हार मान लेते हैं। असल समस्या यह है कि उनके जीवन का कमरा बंद हो जाता है। हवा और रोशनी यानी संवाद और सहारा अंदर तक पहुँच ही नहीं पाते। समाधान बड़े-बड़े भाषणों या प्रेरक नारे लगाने में नहीं है। कभी सिर्फ चाय पर बुला लेना भी किसी की खिड़की खोल देता है। कभी व्हाट्सएप पर साधारण-सा “याद आ रहे हो” किसी का दिन बचा लेता है। और कभी सिर्फ चुपचाप साथ बैठ जाना सबसे गहरी सफाई कर देता है। मानसिक स्वास्थ्य को हम अक्सर कमजोरी समझ लेते हैं। लेकिन यह भी उतना ही वास्तविक है जितना बुखार या सिरदर्द। अगर हमें घर की दीवार पर जमी धूल दिखाई देती है, तो हमें दिलों पर जमी उदासी क्यों नहीं दिखती?आज का दिन आँकड़ों और चेतावनियों के लिए नहीं,बल्कि अपने आसपास की धूल झाड़ने का दिन है। हो सकता है, आपके एक छोटे-से इशारे से किसी की खिड़की फिर से खुल जाए और जीवन भीतर से रोशन हो उठे। तो जब भी आप अगली बार सफाई करें, एक पल रुक कर सोचें क्या आपके किसी प्रिय के मन की खिड़की को भी ताज़ी हवा की जरूरत है ? क्योंकि अंततः, जीवन की असली खूबसूरती तभी है जब हर कमरा रोशनी और सांस लेने की जगह से भरा हो।


नोट- डा. भाग्यश्री जोशी उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी में मनोविज्ञान विभाग में  असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।

error: Content is protected !!