श्रीदेवी: रजत पटल पर जादू बिखेरता सौंदर्य और अभिनय – डॉ पूरन जोशी
आज श्रीदेवी जी का जन्मदिन है। उनका जन्म 13 अगस्त 1963 को हुआ था। यद्यपि मैंने श्रीदेवी पर कभी कोई लम्बा लेख नहीं लिखा लेकिन श्रीदेवी पसंद बहुत थीं। ख़ासकर जब 1980 के बाद धर्मेंद्र, जितेंद्र, राजेश खन्ना यहाँ तक की अमिताभ का जादू भी ढलने लगा था, ऐसे में श्रीदेवी एक स्टार बनकर उभरती हैं और पर्दे पर छा जाती हैं।
अगर हीरोइन के नाम से फ़िल्में किसी की चली तो वो श्रीदेवी की, यूँ ही तो उनको फीमेल सुपरस्टार नहीं कहा गया। उनकी फ़िल्मों की फेहरिस्त लम्बी है। न केवल हिंदी बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं में भी। उनका चुलबुलापन, आँखों से बातें करना, मुस्कराहट और स्टंट सभी चीज़ों के लिए उनको याद किया जाता है।
अपने करियर की शुरुआत श्रीदेवी ने 1967 में चार साल की उम्र में तमिल फिल्म ‘कंधन करुणई’ में एक बच्चे की भूमिका से की। हिंदी सिनेमा में श्रीदेवी की पहली मुख्य भूमिका फिल्म ‘सोलहवां सावन'(1979) में आई, और उन्हें 1983 में रिलीज फिल्म ‘हिम्मतवाला’ से व्यापक पहचान मिली। नैनों में सपना गीत आज भी गूँजता है।
‘सदमा’ में उनके द्वारा निभाई मनोरोगी की भूमिका आज भी प्रासंगिक है। हिंदी सिनेमा में ऐसे किरदार कम लिखे गये हैं लेकिन जो हैं उनमें ‘सदमा’ एक बहुत ज़रूरी फिल्म है।
अस्सी-नब्बे का दशक मुख्य धारा की व्यवसायिक फ़िल्मों, मार- धाड़ और एक्शन का दौर था। नायिकाओं के हिस्से एक -दो गीतों और कुछ दृश्यों के अलावा कुछ नहीं आता था। ऐसे में श्रीदेवी ने इस धारणा को तोड़ा और कुछ फ़िल्में ऐसी हैं जिनको याद करें तो बस श्री जी याद आती हैं। नगीना, निगाहें, चालबाज, कुछ ऐसी ही फ़िल्में हैं। ‘मिस्टर इंडिया’ फिल्म का काटे नहीं कटते ये दिन ये रात और हवा- हवाई सरीखे गीतों से उन्होंने अपनी एक बेहद मजबूत उपस्थिति दर्ज करवाई।
अस्सी के दशक की सिनेमाई पर्दे पर जो रक्त रंजना फैली थी उसको छांटने का काम ‘चाँदनी’ ने किया। साधारण प्रेम कहानी थी जिसको यश चोपड़ा के सधे निर्देशन और श्रीदेवी के अभिनय ने अमर कर दिया। ये फिल्म उस दौर सबसे सफल फ़िल्मों में थी जिसने नये प्रतिमान स्थापित किए।
‘लम्हें’ फिल्म को अपने दौर से आगे की फिल्म माना जाता है जिसमें एक कम उम्र का लड़का अपने से ज्यादा उम्र की लड़की से प्रेम करता है। इस फिल्म को व्यवसायिक सफ़लता नहीं मिली लेकिन आज कल्ट फ़िल्मों में शामिल है। हमारे देश मे ऐसे रिश्ते कब स्वीकार हुए हैं और उस दौर मे तो बिल्कुल नहीं।
उनकी फ़िल्में जुदाई, लाडला, मिस्टर बेचारा, खुदा गवाह सबके विषय अलग रहे जो अभिनय और मनोरंजन से भरी साफ़ -सुथरी फ़िल्में थीं जिनको बच्चे सबसे ज्यादा पसन्द करते थे।
नृत्य में वे पारंगत थीं। मकसद, लम्हें और चाँदनी के वो कठिन नृत्य कौन भूल सकता है। कहते हैं चाँदनी में जो तांडव नृत्य उन्होंने किया था, उसके लिए मशहूर चित्रकार एम एफ हुसैन ने यह फिल्म सैंकड़ों बार देखी थी।
फ़िल्मों में उनको देखकर कोई नहीं कह सकता था कि निजी जिन्दगी में वे बेहद अंतर्मुखी होंगी। एक बातचीत में शबाना आजमी कहती हैं कि श्रीदेवी कमाल थीं , अभी वे सेट पर चुपचाप बैठी हैं जैसे ही शूटिंग शुरू होती थी उनका एक अलग रूप सामने आता था।
अपने दौर की नायिकाओं में उनकी प्रतिद्वंदिता जया प्रदा से थीं, दोनों ही दक्षिण भारत से आईं थीं, बहुत सुन्दर थी और हिंदी फ़िल्मों के दर्शकों ने दोनों को बहुत पसन्द किया। उनकी मृत्यु के बाद जया प्रदा ने कहा था वे बहुत अकेली हो गई हैं।
हिन्दी फ़िल्मों में किसी नायिका को शादी के बाद शायद ही इतनी प्रसिद्धि मिली जितनी उनको इंग्लिश- विंगलिश फिल्म के लिए मिली। इस फिल्म ने उनके प्रशंसकों को फिर से खुश किया । इसके बाद आई फिल्म ‘माॅम’ ने उनको राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाया। श्रीदेवी को पद्मश्री और फिल्म फेयर अवार्ड्स भी मिले।
निजी जीवन की बात करें तो उन्होंने निर्माता- निर्देशक बोनी कपूर से विवाह किया। उनकी दोनों बेटियां जाह्नवी और खुशी फ़िल्मों में सक्रिय हैं।
कहते हैं उनको अच्छे हीरो नहीं मिले लेकिन जब श्री जी पर्दे पर आती थीं हीरो की जरूरत कहाँ रह जाती थी? आज वे हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी फ़िल्में हैं जिनमें हम उसी श्रीदेवी को पाते हैं जो अभी बिल्कुल गंभीर बैठी हैं और कैमरा चालू होते ही उनका अलग रूप सामने आयेगा।